सोचिए मत आप भी आइए सिहावा राज
विनोद गुप्ता विशेष संवाददाता
नगरी। प्राकृतिक
सौंदर्य एवं पर्वत श्रृंखलाओं के बीच सिहावा क्षेत्र जिसकी राजधानी रायपुर
से लगभग दूरी 150 किमी. व जिला मुख्यालय धमतरी से 70 किमी है। समुद्र तल
से जिसकी ऊंचाई लगभग 422 मीटर है। यहां आपको देखने को मिलेगा श्री श्रृंगि
ऋषि आश्रम, महेंद्र गिरी पर्वत, महानदी उद्गम स्थल, राम जानकी, शाकम्भरी,
हनुमान मंदिर, माता शांता देवी गुफा, स्वयंभु माता शीतला शक्तिपीठ, माता
खंम्बेस्वरी, त्रिवेणी संगम महानदी, सोमवंशी राजाओं द्वारा केवल पत्थरों
से निर्माण किया मंदिर।
श्रृंगी ऋषि आश्रम का भारत के
कई जगहों पर उल्लेख है जैसे उत्तर प्रदेश के ऋगवेदपुर, राजस्थान की
भीलवाड़ा और सिहावा में महेंद्र गिरी पर्वत स्थित है। दंडकारण्य का यह
क्षेत्र रामचंद्र जी के वन गमन पथ के रूप में आज भी प्रसिद्ध है। पौराणिक
गाथा एवं पुरातत्व वक्ताओं के मतानुसार सिहावा केवल एक ग्राम विशेष का नाम
नहीं अपितु क्षेत्र विशेष का नाम है। राजा अंडम देव के जमाने से सिहावा एक
गढ़ है। जिसमे सात सौ बरगना एवं बत्तीस पाली ग्राम आता है। सन 1842 से 1843
में राजा भोपाल देव भोसले के शासक में सिहावा एक गढ़ के रूप में रहा है।
पौराणिक गाथाओं एवं लोगों से मिली जानकारी के अनुसार हमारा यह क्षेत्र
घनघोर जंगलों एवं पहाड़ों से घिरा हुआ था। जिसे पुराणों में दक्षिण
दंडकारण्य भी कहा गया है। अब यह भी निर्विवाद सत्य है कि यह क्षेत्र अनेक
ऋषि महात्माओं का तपस्या स्थल रहा है। सन 1853 से जब ब्रिटिश शासन के अधिन
रहा, तब उनके राजस्व में भी सात सौ बरगना और बत्तीस पाली ग्राम सिहावा गढ़
का जिक्र है। मत है कि राजा दशरथ द्वारा उत्रेष्ठि यज्ञ के लिए महर्षि
श्रृंगि ऋषि स्वामी जी को निमंत्रण दिया गया था। महिर्षि श्रृंगी ऋषि के
यज्ञ के उपरांत राजा दशरथ को पुत्र की प्राप्ति हुई थी। आज भी श्रृंगि ऋषि
पर्वत पर पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रता एकादशी यज्ञ साल में दो बार किया
जाता है। पहला यज्ञ पौस माह जनवरी में और दूसरा यज्ञ श्रवण मास अगस्त में
किया जाता है। क्षेत्र जो तपोभूमि में सप्त ऋषियों की मानी जाती है जिसमे
महर्षि श्रृंगी ऋषि, महिर्षि अंगिरा ऋषि, महिर्षि मुचकुंद ऋषि, महिर्षि
कर्क ऋषि, महिर्षि अगस्त ऋषि, महिर्षि सरभंग ऋषि और महिर्षि कुम्भज ऋषि
शामिल हैं।
चित्रोत्पला गंगा महानदी की गाथा-
महर्षि
श्रृंगि ऋषि के कमण्डल से ही महानदी का उद्गम माना जाता है। श्री श्रृंगि
ऋषि पर्वत पर आज भी यह कुंड मौजूद है। जहां से महानदी का उद्गम हुआ है,
महानदी इस पर्वत से निकलकर नीचे गणेश घाट नामक स्थान से निकलती है।
पूर्वकाल में पत्थरों को चीरते हुए पत्थरो के बीच से पानी बहाने की आवाज
स्पस्ट सुनाई देती थी, जो अब दब गई है। इसी कारण इसे चित्रोत्पला गंगा भी
कहा जाता है। छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों के लिए जीवनदायी बनकर प्रवाहित होते
हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
कर्णेस्वर मंदिर प्रांगण देऊरपारा-
कर्णेस्वर
धाम पौराणिक गाथाओं से अवगत कराता है, यूं तो साल भर यहां भक्तों का मेला
लगा रहता है लेकिन सावन के पूरे महीने में और मांग पूर्णिमा को सात दिनों
तक भक्तों की टोली पूरे भारतवर्ष से भगवान शिव जी के चरणों में जलाभिषेक
करने के लिए आती है और मांग पूर्णिमा को त्रिवेणी संगम महानदी, बालका नदी,
पैरी नदी के संगम में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाते हैं। आस्था और
विश्वास का प्रतीक, यह जो मंदिर है जिसका दर्शन करते हैं। इन मंदिरों का
निर्माण केवल पत्थरों से किया गया है, महादेव मंदिर में स्थित शिलालेख के
अनुसार सोमवंशी राजाओं के पूर्वज राजा कर्ण देव ने लगभग 11 वीं सदी देवभद
में 6 मंदिरों का निर्माण कराया। राजा कर्ण देव अपने कुशल कारीगर सूपा नाम
के व्यक्ति से इन मंदिरों का निर्माण कराया था। माघ पूर्णिमा के अवसर पर
इसी स्थान पर पांच दिवसीय मेला महोत्सव का आयोजन कर्णेस्वर ट्रस्ट देऊरपारा
द्वारा किया जाता है। जिसके अध्यक्ष माधव सिंह ध्रुव पूर्व में केबिनेट
मंत्री रह चुके है। जिनके नेतृत्व एवं समिति के मार्गदर्शन में यहां पांच
दिन मेला लगता है। जिसे पूरे क्षेत्र में पर्व के रूप में मनाया जाता है।
दूसरे दिन मेला के अवसर पर क्षेत्र सहित अन्य राज्यों के भी देवी-देवताओं
का बड़ी संख्या में समावेश रहता है, जिसे देखने लोगो का हुजूम गया रहता है।
सुबह, शाम महानदी की महाआरती समिति के संस्थापक एवं संरक्षक महंत साध्वी
प्रज्ञाभारती दीदी जी के सानिध्य में संत महात्मा की उपस्तिथि में
चित्रोत्पला गंगा महानदी की आरती की जाती है। बड़े-बड़े झूले, डिज्नीलैंड,
मौत का कुआ, सर्कस मेले का आकर्षण रहता है। क्षेत्र सहित दूर-दराज से आये
लोग मेले का आनन्द उठाते है। साधु संतों का जमावड़ा आस्था का केंद्र रहता
है।
मां शीतला का दरबार-
मां
चाहे जन्मदायनी हो, पालनकर्ता हो, पृथ्वी माता हो या गौ माता, माता तो मां
होती है। कुछ लोग यहां इसलिए आते हैं क्योंकि यह शक्तिपीठ है। वैसे
छत्तीसगढ़ के विभिन्न प्रांतों में सभी गांव में, शहर में एवं कस्बों में
मां शीतला की स्थापना एवं आराधना होती है। इन्हीं में से एक स्थान सिहावा
गढ़ का भी है। जहां माता शीतला स्वयंभू शीला के रूप में प्रागट्य है।
ट्रस्ट अध्यक्ष कैलाश पवार बताते है यहां के लोग देवी मां शीतला को आराध्य
देवी मानते हैं इस जगह को बहुत पवित्र माना गया है। क्योंकि यह छत्तीसगढ़
की महानदी का उद्गम स्थल है, यह सप्त ऋषियों की तपोभूमि है, यहां श्रृंगी
ऋषि बाबा और मां शांता देवी का वास है। शक्तिपीठ सिहावा शीतला जिला धमतरी
के भीतररास ग्राम में स्थित है, मां शीतला स्वयं शीला के रूप में प्रकट है।
माता शीतला के दरबार में कुछ विशेषताएं देखने को मिलती है। माता का
आशीर्वाद प्राप्त करने तो क्षेत्र सहित दूरदराज से लोग बड़ी संख्या में
पहुंचते हैं। सुबह 8 बजे माता के पूजा-अर्चना और आरती पश्चात पुजारियों
द्वारा माता से वार्तालाप कर लोगों की परेशानियों के हल ढूढ़ने का प्रयास
किया जाात है। लोगों की परेशानियां पुजारी माता तक पहुंचाते है। माता के
शीश पर मनोकामना पुष्प रख कर पूूजारी, सम्बंधित व्यक्ति के नाम पर माता से
अर्जी-विनती करते है। माता रानी उन्ही फूलों को गिराकर भक्तों को आशीर्वाद
प्रदान करती है, जिससे लोगो हां मनोकामनाा पूरी होती है। दूसरी एक और
परंपरा विशेष है, एकादशी के दिन दशहरा पर्व मनाया जाता है, जिसमे
सहस्त्रबाहु रावण का मिट्टी से नंगा पुतला बनाया जाता है जिसे माता के खडग
से एक ही वार में पुजारी द्वारा सर, धड़ से अलग कर देता है। जहां महिलाओं
का आना वर्जित हैै।
माता खंम्बेस्वरी की गाथा-
प्राचीन
मान्यता के अनुसार थाना सिहावा में एक खंभा है, जिसे ही माता खंबेश्वरी के
नाम से जाना जाता है। किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा अगर इस खंभे को गलती
से भी छू लिया जाए तो क्षेत्र में अनायास ही, कोई बड़ी घटना-घट जाती है। जो
पुलिस विभाग की माथापच्ची बनती है। इसीलिए इस खंभे को छूना वर्जित है।
सुबह-शाम इसकी पूजा-अर्चना थाना द्वारा की जाती है। मान्यता है कि
छत्तीसगढ़ के किसी भी थाने के अंदर देवी मंदिर नहीं है पर सिहावा में यह
देखने को मिलता है। नए थाना निर्माण के वक्त इसे हटाने का प्रयास किया गया
था, लेकिन हटाया नही जा सका।
कर्णेश्वर महादेव मंदिर में पुन्नी मेला के अवसर पर 5
दिवसीय रात्रि कालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम
8,/2/20 लोक आँचल मनोज सेन रायपुर की प्रस्तुति
9/2/20 स्वरांजलि लोक कला मंच सिहावा
10/2/20 लोक रंग अर्जुन्दा दीपक चंद्राकर
11/2/20 राग अनुराग हेमलाल कौशल दुर्ग
12/2/20 गोदना रामशरण वैष्णव राजनांदगांव की प्रस्तुति होगी
एक टिप्पणी भेजें