विनोद गुप्ता
नगरी-अंग्रेजों
के जमाने में सालवनों का द्वीप कहलाता था-सिहावा राज। वन्य भूमि होने के
कारण तब भी अंचल विकास की मुख्यधारा से कटा था, आज भी कटा हुआ है। एक ऒर
उच्चस्तरीय वन संपदा, सप्त ऋषियों की तपस्थली, श्रृंगी ऋषि आश्रम,
छत्तीसगढ़ और उड़ीसा को पालने वाली चित्रोत्पला गंगा महानदी का उद्गम,
उन्नत लोकसंस्कृति और जैविक कृषि का गुणगान किया जाता है, वहीं दूसरी ओर
टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट, नक्सलवादी हिंसा, गुणवत्ताविहीन शिक्षा, आधी-अधूरी
सड़कें, रोजगार-उद्योगहीनता जैसी समस्याएं है। सो मांग उठना स्वभाविक
है-हमें राजस्व जिला चाहिये।
आम नागरिक तो
जैसे विकास के इंतजार में ही हैं। सेवानिवृत्त अधिकारी अमृत नाग हो या
मन्नू यादव इस मांग पर कहते हैं बिल्कुल जिला बनना चाहिए साहब। इससे युद्ध
स्तर पर विकास होगा। बेरोजगारों को रोजगार और कल कारखानों के खुलने से
वनांचल के लोगों को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा। उधर पानी पंचायत अध्यक्ष
रवि दुबे कहते हैं कि यह क्षेत्र घोर नक्सल प्रभावित है। लेकिन बस्तर में
जब छोटी-छोटी जगहों को जिला बनाया जा सकता है तब नगरी को क्यों नहीं।
मांग
की पुष्टि में पूर्व विधायक श्रीमती पिंकी शिवराज कहती है जरूर हमें जिला
चाहिए। भाजपा शासन के समय हमने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह से जिला
बनाने की चर्चा की थी। अभी राज्य में कांग्रेस की सरकार है। यह सरकार अगर
क्षेत्र को जिला बना देती है तो बहुत अच्छी बात है, नहीं तो हमारी सरकार
आने पर हम इसके लिए प्रयासरत रहेंगे।
सात थाने हैं तो पुलिस जिला के योग्य तो है ही-
नगरी में होंडा शोरूम के संचालक मोहन नाहटा बताते हैं कि लिखमा से धमतरी
की दूरी 110 किलोमीटर है। नगरी को जिला बनाना आवश्यक है। कुकरेल, बेलर और
मगरलोड के आदिवासी क्षेत्र को शामिल करके इसे आदिवासी जिला घोषित किया जाना
चाहिए। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में कुल 7 थाने हैं इसलिए क्षेत्र
पुलिस जिला बनने के योग्य तो है ही फिर राजस्व जिला बनने से यहां के
आदिवासियों को शासकीय योजनाओं का भरपूर लाभ मिलेगा।
सिहावा विधानसभा का विशाल क्षेत्र है-
वरिष्ठ भाजपा नेता राजेंद्र गोलछा कहते हैं कि यह विधानसभा भौगोलिक
दृष्टिकोण से विशाल है। एक छोर से दूसरे छोर की दूरी 150 किलोमीटर है। अभी
इस विधानसभा में 2 ब्लॉक है कुकरेल और बेलर, दो ब्लॉक और बनना प्रस्तावित
है। उन्हें लेकर नगरी-सिहावा को जिला बनाए जाने से रोजगार व्यवसाय बढ़ेगा।
हम लोगो ने भाजपा के कार्यकाल में प्रयास भी किया था। अभी भी हम सब दलगत
राजनीति से ऊपर उठकर पूरा योगदान देने को तैयार है। और क्यों ना हो आखिर
नगरी सिहावा हमारी जन्मभूमि है।
पर्यटन
में अभूतपूर्व क्रांति संभव- रामायण में उल्लेखित स्थल है
यह। कभी श्रृंगी ऋषि सहित सप्त ऋषियों की तपोस्थली रहा है। जंगल, पहाड़,
नदी की वजह से यहां प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है। उड़ीसा-आंध्रप्रदेश तक
आवागमन के लिए और बस्तर, गरियाबंद जैसे जिलों को जोड़ने वाला यह एक ऐसा
आदिवासी जिला होगा जिसमें पर्यटन की असीम संभावना पैदा होगी। पूर्व पर्यटन
मंडल सलाहकार समिति के प्रादेशिक सदस्य आलोक सिन्हा कहते हैं कि पर्यटन
विभाग द्वारा राम वन गमन पथ अभियान की शुरुआत होगी तो आजादी के बाद जहां
सड़क नहीं बन पाई है ऐसे सुदूर रिसगांव सहित पूरे इलाके में सड़क का जाल
बिछ जाएगा। ऐसे में गांव के अंतिम व्यक्ति तक विकास की गंगा पहुंचेगी। एबीवीपी के नगर अध्यक्ष डागा का कहना है कि जिला तो बनाना ही
चाहिए क्योंकि छोटे-मोटे कार्यों के लिए भी हमें धमतरी, रायपुर जैसे शहरों
में जाना पड़ता है। जिला बनने से सभी मूलभूत सुविधाओं में सुधार होगा।
शिक्षकों की कमी-पिछड़ापन दूर होगा। उच्च शिक्षा यहां की जरूरत है। जिला
बनने से पीजी कॉलेज की कमी दूर होगी। जिला बनने से बड़े अधिकारियों तक,
प्रशासन तक हम अपनी समस्याएं आसानी से पहुंचा सकेंगे।
पेट्रोल पंप संचालक अनिल वाधवानी कहते हैं कि जिला मुख्यालय होने
से व्यापारियों को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। समय पर सभी जानकारियां मिलने
से व्यापारियों के पैसे और समय दोनों की बचत होगी। अधिकारी कर्मचारी की
संख्या बढ़ेगी जिससे शहर का व्यापार बढ़ेगा। व्यापारियों को भी सरकारी
योजनाओं का लाभ मिलेगा।
बेलर को ब्लॉक बनाने के बाद जिले की लड़ाई लड़ेंगे-
हाल ही प्रदेश में 15 साल का निजाम बदल गया है। इस बार जनता ने
सौम्य, शिक्षित और योग्य महिला डॉ लक्ष्मी ध्रुव को 45 हजार वोटों से विजयी
बनाकर बता दिया है कि उन्हें हर हाल में परिवर्तन चाहिए, विकास चाहिए।
श्रीमती ध्रुव का एक नारा था कि उन्हें माटी का कर्ज चुकाना है तब क्या वे
यहां की जनाकांक्षा जिला बनाने की मांग पर कुछ करेंगी? इस मांग पर
सकारात्मक राय देती हुई डॉ लक्ष्मी ध्रुव कह उठती है-देखिए, पहली
प्राथमिकता बेलर को ब्लॉक बनाने की है। उसके बाद जिले के लिए लड़ाई
लड़ेंगे।
विकास के आडे आ जाता
है वनविभाग- आजादी के 7 दशक बाद यहां 5-6 निजी राइस मिलों के
अलावा कल कारखानों के नाम पर जीरो है। कई सरकारें आई लेकिन वन पर आधारित
कोई उद्योग खुल नहीं पाया। इसलिए यहां तेंदूपत्ता तोड़ाई, महुआ बिनाई जैसे
छुट-पुट कार्यों के अलावा कृषि कार्य भी पार्ट टाइम है। क्षेत्र का कुल
कृषि रकबा 40 हजार हेक्टेयर है। सिहावा पहाड़ से निकली महानदी पर सोंढूर
बांध बना है। लेकिन सोंढुर जलाशय केवल 7 हजार हेक्टेयर जमीन ही सिंचित कर
पाता है जबकि बांध बनाते समय यहां का 20 हजार हेक्टेयर सिंचित किया जाना
प्रस्तावित था। हालांकि हमें वन भी चाहिए और विकास भी लेकिन इस वक्त वन
विभागीय अड़ंगा ही विकास का दुश्मन नजर आता है। आज भी डोंगरडूला,
गट्टासिल्ली, राजपुर, गुहाननाला, दुगली, करैहा सहित 34 ग्राम पंचायत के
लोग सोंढूर से अपनी जमीन की सिंचाई को लेकर आंदोलनरत है।
विकास के कुछ प्लस पाइंट-
*नगरी
क्षेत्र से होकर गुजरने वाली रायपुर विशाखापट्टनम हाईवे निर्माण के
प्रस्ताव को केंद्र से मंजूरी मिल गई है। इससे आंतरिक मार्गो का ऐसा जाल
फैलेगा जो विकास की रोशनी को गहरे अंधेरे अंचल तक पहुंचा देगा। यह
उड़ीसा-आंध्रप्रदेश तक आने-जाने का एक सरल और मजबूत रास्ता ही नहीं होगा
बल्कि पर्यटकों को खींचने में मदद करेगा।
*धार्मिक
पर्यटन के लिए श्रृंगी ऋषि आश्रम महानदी का उद्गम स्थल सिहावा पहाड़, सोंढूर
बांध, सीतानदी अभ्यारण शानदार टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन सकते हैं बशर्ते
सुविधा हो।
* गंगरेल जैसा रिसॉर्ट और मोरल सोंढुर में भी बन सकता है।
*
नगरी के जंगलों में बहुत कुछ है इतने किस्म के वनोपज और औषधि वनस्पतियां
हैं कि सिर्फ प्रसंस्करण उद्योग लगाने भर की देर है। आज भी धमतरी के लोग
कहते हैं कि वन विभाग का उत्पादित शहद मार्केट में बिकने वाले अन्य शहद की
तुलना में दस गुना बेहतर है। क्यों ना इसे नगरी का शहद कह कर ब्रांड बनाया
जाए। बहुतायत से मधुमक्खी पालन हो, क्योंकि यह धड़ल्ले से बिक रहा है।
*
नगरी का सुगंधित दुबराज विश्व में चावल की सबसे बेहतर वैरायटी में से एक
है यहां कई तरह की कीमती रंग-बिरंगे सुगंधित धान का प्रयोग सफल हो चुका है।
जो शुगर के मरीजों के लिए बहुत अच्छा है। सरकार संरक्षण और शोध के जरिये
उन्नत कृषि का विस्तार करें। याद रखें, इसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हो
सकता है।
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