ब्यूरो
धमतरी। प्रार्थनाष्टक
,कष्ट निवारण अष्टक व स्वामी टेऊँराम चालीसा पाठ के दौरान भजन कीर्तन में
सभी भक्तगणों के घरों में एक ही भजन का सुमधुर स्वरों में गायन किया
गया *ओ ओ ओ जोगी स्वामी टेऊँराम हो ,स्वामी टेऊँराम हो ,सुन्दर श्याम हो !!
छदे शहर छिपी श्मशान में ,वञी दाता वेठो हो ध्यान में !कयो झुगटनि में
जोगु,जीअं लखे न लोगु,कोई बछे न भोगु!!*
यह भजन
प्रेम प्रकाश मण्डल की फुलवाड़ी के पुष्प रहे पूज्य संत एवं महान कवि पहिलाज
जी के द्वारा पूज्य आचार्य की महिमा को सुंदर रूप से संजोते हुए लिखा
है। पूज्य दातार स्वामी टेऊँराम महाराज सांसारिक वैभवता से परे रहकर
स्वयं को लोगों से छुपाकर एवं भोगों के प्रभाव से बचकर कभी सूनसान श्मशान
में तो कभी घने जंगल में पेड़ों के घने झुरमुट में छिपकर ध्यान में बैठ कर
कठिन तप में लीन रहते थे। टंडे आदम जहाँ रेत के ढेर माने टीले एवं घनी
झाड़ियां थी व आस-पास जंगली जानवरों गीदड़ ,बाघ व शेरों का निवास था वहाँ
तपस्या की व वहीं अपरापुर दरबार का निर्माण किया एवं चैत्र मास के बारहवीं
तारीख से गंगा पर कुम्भ मेले के समान चैत्र-मेले का प्रारम्भ किया भारत
वर्ष के विभाजन के पश्चात उक्त मेले को प्रति वर्ष अमरापुर स्थान जयपुर में
बड़े विशाल रूप से मनाया जाता है लेकिन इस वर्ष 99 वाँ वार्षिक चैत्र-मेला
कोरोना-महामारी के कारण नहीं हो पाया जिसे पारिवारिक स्तर पर घर घर में
मनाया गया।
पूज्य आचार्य सद्गुरु स्वामी टेऊँराम
महाराज को कवि ने निष्कामी,अन्तर्यामी व सत्य-प्रकाशी बताते हुए लिखा है कि
उनके दरबार में आने वाले प्रत्येक जिज्ञासु को सम्मान मिलता है। साथ ही
साथ भोजन का भंडारा निरंतर चलता ही रहता है व दूसरी ओर भजन कीर्तन का भी
अखुट भजनों का भंडारा चलता रहता है जिसमें सभी मीठी वाणी व सुमधुर संगीत से
सजे भजनों को गाते हैं जिससे सम्मिलित जिज्ञासुअों का मन मस्तान हो भाव
गुरु-भक्ति से भर जाता है।
एक टिप्पणी भेजें