●●●●●पिता●●●●●
धरा अग़र माता है तो फिर पिता आसमां है
हौसला साहिल से बढ़कर कदमों में जहान है
सुख सारे त्यागकर समर्पण भाव दिखाते हो
मुश्किल घड़ी आ जाय तो ढाल भी बन जाते हो
मौन रखकर क्यूँ भला सारे भाव छिपाते हो
विशाल प्यार का सागर हो क्यों नहीं दर्शाते हो
कठिन राह पर आगे बढ़ना तुमसे ही तो सीखा है
पहचान मेरी तुमसे ही है तुमने ही तो सींचा है
वैसे तो हर एक दिवस तुम बिन निराधार है
आशीष भरे छांव से मेरा जीवन साकार है
जीवन का अपना हर क्षण मैं तुम्हें अर्पित करती हूँ
इस दिवस पर यह रचना मैं तुम्हें समर्पित करती हूँ
️उज्जवला(परछाई)
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