कोरबा।छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थल सतरेंगा की बगिया में खिलने वाले रंग-बिरंगे फूल और हरियाली की चादर की तरह लगी घास महिला स्वसहायता समूहों द्वारा गांव के गोठानों में बनाई गई कम्पोस्ट खाद की देन है। जिले के 74 गोठानों में बनी खाद से ही सतरेंगा के बगीचे के पौधों और लॅानग्रास को पोषण मिल रहा है। गोठानों की कम्पोस्ट खाद में एक ओर जहां सतरेंगा के गार्डन को रंग-बिरंगे खूशबुदार फूलों से भर दिया है, वहीं दूसरी ओर गोठानों की इसी खाद से महिला स्वसहायता समूहों का खजाना भी भरते जा रहा है। जिले के 74 गोठानों में बनी खाद में से लगभग 60 क्विंटल कम्पोस्ट खाद को उद्यानिकी विभाग ने उत्पादक महिला स्वसहायता समूहों से खरीद कर सतरेंगा के गार्डन में उपयोग किया है। महिला समूहों को इसके लिए नौ रूपये साठ पैसे प्रति किलो की दर से उद्यानिकी विभाग ने सीधे भुगतान किया है। शासकीय तौर पर तैयार किया गया सतरेंगा का यह गार्डन पूरी तरह से कम्पोस्ट खाद का उपयोग कर विकसित किया गया है। खास बात यह है कि कम्पोस्ट खाद कहीं बाहर से नहीं मंगाई गई है बल्कि उसका उत्पादन छत्तीसगढ़ सरकार की नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी विकास योजना के तहत स्थानीय स्तर पर बनाये गये गोठानों में हुआ है।
जिले में कम्पोस्ट खाद बनाने का काम 74 गोठानों में 74 महिला स्वसहायता समूहों द्वारा पिछले एक साल से लगातार किया जा रहा है। समूह की महिलाओं ने इन गोठानों में 339 वर्मी बेडों में एक हजार 115 क्विंटल वर्मी खाद उत्पादित किया है। इस खाद को स्थानीय स्तर पर किसानों के साथ-साथ वन विभाग, कृषि विभाग, उद्यानिकी विभाग, रेशम विभाग ने भी अपनी शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में उपयोग के लिए खरीदा है। जिले की वर्मी कम्पोस्ट का प्रमाणीकरण संस्था द्वारा गुणवत्ता प्रमाणन भी किया जा चुका है। महिला समूहों ने इस कम्पोस्ट खाद का रेट नौ रूपये साठ पैसे प्रतिकिलो तय किया है। इस हिसाब से महिलाओं ने अब तक 10 लाख 70 हजार रूपये से अधिक का कम्पोस्ट खाद बना लिया है। इसमें से महिलाओं ने लगभग 915 क्विंटल खाद की बिक्री कर दी है। जिससे उन्हें आठ लाख 87 हजार रूपये की आमदनी हुई है। अभी महिलाओं के पास लगभग दो लाख रूपये की दो सौ क्विंटल कम्पोस्ट खाद बची है। इसके साथ ही खाली हुए वर्मी बेडों को फिर से भर दिया गया है। जिनसे आने वाले 15 दिनों में लगभग चार सौ क्विंटल और खाद बन जायेगी।
पोंड़ीउपरोड़ा विकासखंड महोरा गांव में बने गोठान का संचालन करने वाले हरेकृष्णा स्व सहायता समूह की सदस्य कांतिदेवी कंवर कहती है कि हम जो खाद बनाते हैं, वह कचरे, गोबर से बनता है। उसे बनाने का कोई खर्च नहीं है। फिर दस रूपये किलो में बेचते हैं। यह तो सोने पर सुहागा है। कचरे की सफाई भी हो जाती है और कम समय में ही अच्छी-खासी कमाई भी। महिला समूह द्वारा प्रतिदिन गोठानों में उपलब्ध गोबर और पेड़-पौधों के पत्तों तथा वानस्पतिक कचरे को वर्मी बेड में भरकर खाद तैयार किया जाता है। वर्मी बेड में भरे कचरे में केचुए डालकर उसे जैविक खाद में परिवर्तित किया जाता है। ऐसी जेैविक खाद सब्जियों के साथ-साथ फलों और अन्य फसलों के लिए भी उपयोगी होती है। इनमें किसी प्रकार का रसायन उपयोग नहीं होता। जिले में महिला समूहों द्वारा बनाई गई इस खाद की दिन प्रतिदिन मांग बढ़ती जा रही हैं। खाद बनाने की ट्रेनिंग उद्यानिकी विभाग द्वारा महिलाओं को दी गई है। राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत बने समूहों को खाद बनाने के काम में लगाया गया है। जरूरत के हिसाब से अब शासकीय विभाग उंचे दामों पर बीज निगम के माध्यम से जैविक खाद नहीं खरीदकर, स्थानीय स्तर पर ही महिला स्वसहायता समूहों से खाद की आपूर्ति कर रहे हैं।
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