धमतरी।अभी लगातार सब्जी के दाम आसमान छूने लगे हैं ।आम लोगों के यह पहुंचकर बाहर हो गया है ।इसे एक कवि ने अपने नजरिया से देखते हुए कविता में ऐसे पिरोया
मँहगा टमाटर भाटा होगे।
गोभी बाय बाय टाटा होगे।
आसमान में खेक्सी कुंदरू,
मिरची बहुत झन्नाटा होगे।
कोचिया मन के पौ बारा हे,
अउ किसान के घाटा होगे।
मंहगाई मा अब गहुँ पिसागे,
बाजार ले गायब आटा होगे।
जब ले आइस मोबाइल हा,
हाथ सबो के गा डाटा होगे।
भाव बढ़त हे पेट्रोल के तबले,
गाड़ी हा सबके फर्राटा होगे।
देख देख के मन लालचवाय,
जइसे अमली के लाटा होगे।
बजट बिगड़गे घर के सबके,
अब गायब नींद खर्राटा होगे।
सोना चांदी के सपना सब के,
"दीप" शून्य बटे सन्नाटा होगे।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
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