वतन जायसवाल/भूपेंद्र साहू
बिलासपुर/धमतरी।
लंबे संघर्ष के बाद आख़िरकार गंगरेल बांध विस्थापितों को जमीन मिलेगी।
हाईकोर्ट ने एक बड़ा फ़ैसला सुनाते हुए गंगरेल बांध संघर्ष समिति के भूमिहीन
सदस्यों को ज़मीन देने का आदेश जारी किया है । साथ ही कोर्ट ने इसकी पूरी
प्रक्रिया के लिए सरकार को 3 महीने का समय दिया है ।
बता
दे की 1972 में जब गंगरेल बांध निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई तो इलाके के
लगभग 55गाँवो का अधिग्रहण किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी ने सभी को जमीन देने का वायदा किया था। जिसमें कइयों को तो ज़मीन मिल
गई थी। लेकिन हज़ारों लोग ऐसे थे जो ज़मीन की आस लगाए हुए थे। पर साल पर साल
बीते ज़मीन नही मिली। फलस्वरूप जमीन का संघर्ष शुरू
हुआ। हर बार ये अपनी जमीन मांगने आते और आश्वासन पाकर लौट आते। कई दशक
बीतने के बाद भी जब जमीन नही मिली तो मामला कोर्ट में पंहुचा। अब 48 साल
बाद विस्थापितों की ऊम्मीद पर न्यायालय की मुहर की ख़ुशी आई।
जस्टिस
एम.एम.श्रीवास्तव की सिंगल बेंच ने ये आदेश जारी किया है । जिसे लेकर
कोर्ट में याचिका दायर की गई थी फिलहाल कोर्ट के इस फैसले से करीब 900 से
अधिक विस्थापितों को न्याय मिला।
लोगों
ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। अब जाकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट से पीड़ितों को
न्याय मिला है। कोर्ट ने प्रभावित ग्रामीणों को उचित मुआवजा व व्यवस्थापन
करने का आदेश राज्य शासन को जारी किया है और इसके लिए तीन महीने की मोहलत
दी है। खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में यह मामला 20 साल चला।
समिति
ने वकील संदीप दुबे के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता गंगरेल बांध प्रभावित समिति ने याचिका में इस बात का भी जिक्र
किया था कि बांध के लिए जमीन अधिग्रहण के पूर्व जिला प्रशासन और सिंचाई
विभाग के अधिकारियों ने पुनर्वास नीति के तहत व्यवस्थापन करने का आश्वासन
दिया था। अधिग्रहण के बाद इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। अफसरों ने मुआवजा देने
में भी मनमर्जी की है। एक पेड़ के लिए 25 पैसे का भुगतान किया है। जबकि
दस्तावेज पर ध्यान दे तों प्रभावितों को 10 रूपये से लेकर 250 रूपये मुआवजा
दिया गया है। वहीं मामले में सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 16 जनवरी 2020 को
फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अधिवक्ता ने पैरवी की नहीं ली कोई फीस
हाईकोर्ट
में अधिवक्ता संदीप दुबे ने पैरवी की कोई फीस नहीं ली। उन्होंने कहा कि
पूर्व में राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों को आश्वासन दिया जाता रहा और
अलग-अलग जवाब दाखिल किया जाता रहा, जिसके चलते मामला लंबा खिंच गया।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी हाईकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा 2004 से 2010 तक
यही कहा जाता रहा कि अनुशंसा के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।
सिंचाई
के दृष्टिकोण से 55 गांव (52 राजस्व, 3वन ग्राम )को उजाड़ कर 1972 में
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी नींव रखी थी। जो सन 1978 में
बनकर तैयार हुआ ।छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए जीवनदायिनी है। 9517 हेक्टेयर
में फैले पानी से 264310 हेक्टेयर खेतों में सिंचाई की जाती है ।इसके अलावा
भिलाई स्टील प्लांट, नगर निगम रायपुर, दुर्ग,भिलाई, धमतरी को भी पानी दिया
जाता है।इसकी कुल क्षमता 32.15 टीएमसी है जिसमें 27.07 टीएमसी उपयोगी जल
है। इसके पूरक बांध दुधावा, मुरूमसिल्ली, और सोंढूर बांध है।
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