इंदौर।होम्योपैथिक चिकित्सा महाविद्यालय में चिकित्सा छात्र - छात्राओं को बताया टीका कारन का महत्व समझाया क्यूँ जरुरी है सभी ने खुद भी कराना चाहिए और लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए डॉ द्विवेदी ने कहा की टीकाकरण के साथ ही मास्क भी लगाना चाहिए जब तक हमारी हार्ड इम्युनिटी तथा रोगप्रतिरोधक क्षमता बेहतर नहीं हो जाती।,डॉ द्विवेदी ने बताया जैसे किसी भी अन्य बीमारी के ख़िलाफ़ शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए लोगों को वैक्सीन दी जाती रही है है. उसी प्रकार कोरोना के रोकथाम बचाव में भी यह वैक्सीन कारगर रहेगी।
उल्लेखनीय है की डॉ द्विवेदी ने कोरोना कोविड से बचाव के लिए तथा रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए होम्योपैथिक दवा बहुतायत में लोगों को दिया जिसका परिणाम काफी सकारात्मक दिखा फिर भी वे वैक्सीन लगाने के पक्षधर हैं
डॉ. ए.के. द्विवेदी उपचार के आधुनिक उपायों से शहर और देश ही नहीं, भारत के बाहर अन्य देशों में भी प्रसिद्ध होते जा रहे हैं। गुजराती होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज इंदौर में भी वे चिकित्सा शिक्षक के रूप में अपने ज्ञान से हर साल हजारों विद्यार्थियों को होम्योपैथिक चिकित्सा से सफल उपचार के तरीके बता रहे हैं। डॉ. ए.के. द्विवेदी का कहना है कि इस क्षेत्र में मेरे आने के कई अहम कारण रहे हैं। सबसे पहला तो यह कि जिन बीमारियों का उपचार बिना ऑपरेशन के हो सकता हैं उन्हें होम्योपैथिक, नेचुरोपैथी और योग के माध्यम से कर रहे हैं। कैंसर, अप्लास्टिक एनीमिया सहित कई अन्य जटिल बीमारियों से पीड़ित मरीज लाखों रूपये खर्च कर देते हैं फिर भी उन्हें राहत नहीं मिल पाती है, कई मामलों में तो आखिरी समय में मरीज के परिजनों को पता लगता है कि होम्योपैथी और नेचुरोपैथी में कारगर इलाज संभव है।
होम्योपैथी और नेचुरोपैथी के संयुक्त इलाज से कम समय में बेहतर परिणाम -
डॉ. ए.के. द्विवेदी का कहना है कि कई लोग कहते हैं कि होम्योपैथी और नेचुरोपैथी उपचार में समय लगता है। मैं मानता हूँ कि इन उपचारों के बारे में मरीज और उनके परिजनों को बारीकी से जानकारी लेना चाहिए। हमारा मकसद उपचार के साथ उपचार की सभी प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक करना भी होता है। हम जो भी इलाज करते हैं उसके साथ खान-पान की विस्तार से जानकारी भी देते हैं। कई मरीजों के उपचार में यह देखने को मिलता है कि उन्हंे जिंदगीभर दवाईयाँ खाना पड़ता है, दर्द निवारक दवाईयों से काम चलाना पड़ता है। यह बीमारी का स्थाई इलाज नहीं होता है। इसकी जगह हम बीमारी के कारणों पर काम करते हैं। जिन कारणों से बीमारी होती है उन कारणों को स्थाई रूप से दूर करने का प्रयास करते हैं।
शिरोधारा के हैं अनेक फायदे
पंचकर्म में शिरोधारा का प्रमुख स्थान है। शिरोधारा दो शब्दों से मिलकर बना है। शिरो (सिर), धारा (प्रवाह) यानि कि मध्य स्थान से थोड़ा ऊपर ललाट पर किसी तरल प्रदार्थ को जब धारा के रूप में कुछ समय तक बिना रूके गिराया जाता है तो इसे शिरोधारा कहते हैं। यह तरल प्रदार्थ लगातार 30 से 40 मिनट तक एक निश्चित धारा में गिराया जाता है। इसमें औषधीय तेल, दूध, तक्र (छाछ), नारियल पानी और केवल पानी का प्रयोग किया जाता है। इससे तनाव, अनिद्रा बेचैनी, अवसाद सहित कई तरह की परेशानी में काफी लाभ मिल रहा है। मन को भी शांति मिलती है। डॉ. एके द्विवेदी का कहना है कि कोरोना महामारी के बाद सभी को यह बात समझ में आ गई है स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। एनीमिया, थैलेसीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया, ब्लड कैंसर के मरीजों को बार-बार ब्लड चढ़ाना पड़ता है, इससे शरीर में आयरन संग्रहित होने लगता है। होम्योपैथिक इलाज से हीमोग्लोबिन व प्लेटलेट्स बढ़ाया जा रहा है।
एक टिप्पणी भेजें