वतन जायसवाल
रायपुर। बस्तर की बेटी नैना धाकड़ ने विश्व की सबसे बड़ी चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया। इसके साथ ही वो माउंट एवरेस्ट विजय करने वाली छत्तीसगढ़ की पहली महिला पर्वतारोही की उपलब्धि अपने नाम कर लिया। नैना की कामयाबी पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टी. एस. सिंहदेव समेत आला अधिकारियों और प्रदेशवासियों ने शुभकामनाये दी।
1 जून का दिन छत्तीसगढ़ के इतिहास में स्वर्णिम अक्षर में लिखा जाएगा। लगभग 8848.86 मीटर वाली विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट और के2, कंचनजंगा के बाद 8516 मीटर ऊंची विश्व के चौथे नंबर का पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट को बस्तर की नैना धाकड़ ने नाप दिया। नैना के इस अद्भुत कारनामे से छत्तीसगढ़ गौरवमयी हो गया है। हालांकि अपने इस एवरेस्ट विजयी अभियान के बाद अत्यधिक थकान होने की वजह से उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। जिससे वे चोटिल हो गई। जिससे उनकी साथी रायगढ़ पर्वतारोही याशी जैन ने खेल भावना का प्रदर्शन करते हुए उन्हें बचा कर सकुशल कैंप तक ले आई। अब नैना खतरे से बाहर बताई गई है।
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काठमांडू से लगातार पर्वतारोही नैना के एक्सपीडिशन पर नजर बनाये हुए थे। एक जून की सुबह नैना को टॉप पर पहुंचना था जिसके साथ ही उनका एक्सपिडीसन पूर्ण हो जाना था। लेक़िन दोपहर तक जब उसकी कोई खबर नहीं आई तो, याशी चिंतित हो गई और नैना की कंपनी से लगातार संपर्क की कोशिश करने लगी। बड़ी मुश्किल से लगभग दोपहर दो बजे याशी को पता चला कि नैना अत्यधिक थकान के कारण बीमार हो गई है और माउंट एवरेस्ट से नीचे आने की हिम्मत नहीं कर कर पा रहीं हैं।
जैसे ही याशी को यह पता चला उन्होंने बिना देर किये छत्तीसगढ़ के प्रथम माउंट एवरेस्टर राहुल गुप्ता (अंबिकापुर) और अपने पिता अखिलेश जैन (रायगढ़) से संपर्क कर नैना को बचाने की गुहार लगाई। साथ ही जगदलपुर प्रशासन से संपर्क किया गया। जगदलपुर कलेक्टर रजत बंसल और एस. डी. एम. गोकुल राऊते को पूरी घटना की जानकारी दी। उन्होने तत्काल नेपाल स्थित भारतीय दूतावास से बात की और संबंधित कंपनियों से संपर्क किया। जिसके बाद नैना के लिये रेस्क्यू आपरेशन शुरू हुआ। वहां के एक्सपर्ट शेरपा, नैना को रेस्क्यू करने निकले। शाम छह बजे तक नैना को रेस्क्यू कर कैंप चार तक लाया। इस तरह याशी की सक्रियता से नैना की जान बच गई। याशी भी इस दल का हिस्सा थी, लेकिन 2 प्रयास के बाद भी वो माउंटग एवरेस्ट तक नही पहुँच पाई थी। खराब मौसम की वजह से उनको एवरेस्ट शिखर के समीप से लौटने पड़ा।
नैना बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से 10 किलोमीटर स्थित एक्टागुड़ा गांव के एक ग़रीब परिवार की हैं। पिता का साया बचपन में ही उठ गया। मां ने पेंशन की राशि से परिवार का भरण पोषण किया और बच्चों को शिक्षित बनाया। उसने स्कूली शिक्षा जगदलपुर के महारानी लक्ष्मीबाई कन्या हायर सेकंडरी स्कूल और बस्तर विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने 2009 में पर्वतारोहण के क्षेत्र में जाने का फैसला किया। इसकी प्रेरणा उसे राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़े रहने के दौरान मिली। नैना एक भाई गांव में चाय की दुकान चलाता है जबकि दूसरे छोटे भाई की किराना की दुकान है।नैना विगत 10 साल से पर्वतारोहण में सक्रिय हैं।
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