Video: पर्वतारोही चित्रसेन साहू ने किया कमाल,यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर फहराया तिरंगा

 


भूपेंद्र साहू

धमतरी। भारतीय ब्लेड रनर छत्तीसगढ़ के  पर्वतारोही चित्रसेन साहू ने 23 अगस्त को यूरोप महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा झंडा फहराकर इतिहास रच दिया। चित्रसेन ने खराब मौसम के बावजूद कृत्रिम पैरों के सहारे यूरोप की सबसे ऊंची चोटी चढऩे की सफलता हासिल की। उसने -25 डिग्री सेल्सियस शरीर जमा देने वाली ठंड और 50-70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही बर्फीले तूफान का सामना करते हुए 23 अगस्त की सुबह 10.54 बजे 5400 मीटर ऊंची माउंट एलब्रुस चोटी को फतह कर लिया।


हालांकि, चोटी में चढ़ते समय चित्रसेन के पैर में चोट भी लग गई और उसका चलना मुश्किल हो गया। इसके बावजूद उसने हार नहीं मानी और माउंट एलब्रुस चोटी का चढ़कर छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किया।

 


अब चौथे चोटी में चढऩे की करेंगे तैयारी

चित्रसेन में माउंट एलब्रुस चोटी चढ़कर तीसरे महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी चढऩे का गौरव हासिल कर लिया। अब वे सात में से चौथे महाद्वीप की चोटी में चढऩे का सफर शुरू करेंगे। चित्रसेन ने माउंट एलब्रुस चढ़ाई 17 अगस्त को शुरू की थी।


उन्होंने मिशन को सपोर्ट करने के लिए मुख्य स्पॉन्सर नार्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसिएशन के साथ छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल, राजेंद्र किशन लाल फाउंडेशन, सुमित फाउंडेशन, जीवनदीप,Augtech nextwealth  का आभार माना है


 ‘हाफ ह्यूमन रोबो’ के नाम से प्रसिद्ध

27 साल के चित्रसेन साहू मूलरूप से बालोद जिले के बेलौदी गांव के हैं। 2014 में उन्होंने बिलासपुर के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। सात साल पहले एक ट्रेन दुर्घटना में अपना दोनों पैर खो चुके चित्रसेन साहू ने जिंदगी के आगे घुटने नहीं टेके। पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की कहानी पढ़कर उनका हौसला बढ़ा और वे अपनी शर्तों पर जिंदगी जीते रहें। चित्रसेन छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड में इंजीनियर है। इस युवा इंजीनियर और भारतीय ब्लेड रनर चित्रसेन साहू को ‘हाफ ह्यूमन रोबो’ के नाम से भी जाना जाता है।


वे अफ्रीका के किलिमंजारो में तिरंगा लहरा चुके हैं।चित्रसेन साहू को हाल ही में छत्तीसगढ़ शासन और मोर रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने प्लास्टिक फ्री अभियान का ब्रांड एंबेसडर भी बनाया है।

दिव्यांगों के साथ कोई भेदभाव न हो

 चित्रसेन का मानना है कि जो व्यक्ति जन्म से या किसी हादसे में शरीर का कोई अंग गंवा दे तो उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। शरीर के किसी अंग का न होना कोई शर्म की बात नहीं, न ही ये हमारी सफलता के आड़े आता है। हम किसी से कम नहीं, न ही अलग हैं, तो बर्ताव में फर्क क्यों करना? हमें दया नहीं, आप सब के साथ एक समान जिंदगी जीने का हक चाहिए।’ उन्होंने कहा कि वे समाज मे दिव्यांगजनों के लिए जो दया भाव है उसे दूर करने के लिए यह कर रहे हैं ताकि लोग समान दृष्टिकोण से देखें।



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