रुद्री में नौ दिवसीय पंच कुंडीय श्रीमद् रामचरितमानस महायज्ञ एवं राम कथा महोत्सव का शुभारंभ



धमतरी।परम पवित्रतम् चित्रोत्पला पावन तट पर भगवान दक्षिण मुखी हनुमान के पावन सानिध्य में रुद्री में नौ दिवसीय पंच कुंडी श्रीमद् रामचरितमानस महायज्ञ एवं राम कथा महोत्सव में प्रथम दिवसीय यज्ञशाला में दिव्य विधि से वेद वेद मंत्रों की ध्वनि के साथ प्रातः कालीन सत्र से आराधना प्रारंभ हुआ। दिव्य वैदिक विधि से यज्ञ मंडप में अग्नि मंथन से पवित्र अग्नि प्रगट की गई और श्रीरामचरितमानस के मंत्र रूप चौपाइयों के द्वारा विश्व कल्याण की भावना से भक्त प्रतिनिधियों के द्वारा यज्ञ अंखियों का क्रम प्रारंभ हुआ।

 यज्ञ की महिमा पर  पुरी पीठाधीश्वर श्रीमद् जगतगुरु शंकराचार्य महाराज के अनन्य कृपा पात्र शिष्य यज्ञ आचार्य  राम प्रताप शास्त्री  महाराज"कोविद " ने कहा कि यज्ञ अग्निहोत्र के समय वृक्षों में भगवान का वास मानकर पीपल, बरगद,आम आदि की पूजा की जाती है। प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव ही यज्ञ है। यज्ञ को सफलता और सिद्धि का आधार माना जाता है। यज्ञ का आधार अग्नि है और अग्नि अनमोल है। 

सनातनधर्म के अनुसार यज्ञ-व्रतादि से शरीर, आत्मा के साथ प्रकृति संतुलन की संभावना बनती है। सूर्य अपनी भूमिका में आता है और यज्ञ से ही जीवनाधार पर्जन्य (बादल) बनकर बरसता है। कहा भी है ‘यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञकर्म समुदभवः।’ यज्ञ में प्राणि-मात्र के सुखी होने की कामना निहित है। यज्ञ अग्निहोत्र केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रहकर शोध का विषय भी  है। जिस घर में हवन होता है, वहां की वायु हल्की होकर फैलने लगती है और उस खाली स्थान में यज्ञ से उत्पन्न शुद्ध वायु वहां पहुंच जाती है। इसमें विसरण का नियम काम करता है।

 जहां कोई यज्ञ हुआ रहता है, वहां कई दिन तक समिधा की खुशबू रहती है। प्रदूषण आज की विकट समस्या है। हवा, पानी और मिट्टी दिनोंदिन प्रदूषित होती जा रही है। बढ़ता तापमान, औद्योगीकरण, वृक्षों की कटाई, पॉलीथीन का उपयोग पर्यावरण को जहरीला बना रहा है  परिणाम स्वरूप प्रकृति के दोहन से अनेक महामारी उपद्रव प्रगट हो रहे हैं इन सबके लिए यज्ञ परंपरा अमृत के समान उपयोगी है कथा और यज्ञ आयोजन समिति ने जनमानस को अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर इस पावन यज्ञ और कथा सत्र का लाभ लेने का आह्वान किया है।




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