जैविक खेती में होम्योपैथिक दवा के प्रयोग पर कार्यशाला

 






होम्योपैथी की मदर टिंक्चर जैविक खाद्यान्न के उत्पादन व गुणवत्ता सुधारने में बहुपयोगी

इन्दौर। कृषि महाविद्यालय में कृषि आदान विक्रेताओं के लिए एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स की 7वीं बैच के लिए होम्योपैथी दवा के खेती में प्रयोग हेतु विशेष कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ. हरिसिंह ठाकुर ने किया प्रमुख वक्ता होम्योपैथिक चिकित्सक डाॅ.ए.के. द्विवेदी तथा मुख्य अतिथि डाॅ. वैभव चतुर्वेदी असिस्टेंट प्रोफेसर साइकेट्री, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इन्दौर थे।

कार्यक्रम में उपस्थित कृषकों तथा  कृषक प्रशिक्षार्थीयों को सम्बोधित करते हुए  होम्योपैथिक चिकित्सक डाॅ. ए.के. द्विवेदी ने बताया कि, पौधों (खेती) को बीमारियों से बचाने तथा कीट-पतंगों को कम करने तथा गुणवत्ता युक्त उत्पादन बढ़ाने हेतु होम्योपैथिक दवाईयाँ विशेष रूप से मदर टिंक्चर का छिड़काव किया जा सकता है। पारम्परिक खेती जिसमें रासायनिक खाद तथा कीटनाशक दवाईयों का प्रयोग किया जाता है जिसके बजाय यदि होम्योपैथिक दवा मदर टिंक्चर के प्रयोग से खेती की जाती है तो इससे खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ेगी और इस प्रकार से उत्पादित जैविक खाद्यान्न से हमारे शरीर को लाभ मिलेगा, लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी तथा पाचन क्रिया भी बेहतर होगी।

डाॅ. द्विवेदी ने बताया कि, होम्योपैथिक दवाईयाँ सिर्फ इंसानों की बीमारी को ही दूर नहीं करती है, बल्कि इससे पशु-पक्षियों का भी इलाज किया जाता है। यदि होम्योपैथिक दवा का कृषि में उपयोग किया जाता है तो इससे पैदावार बढ़ने के साथ-साथ गुणवत्ता में भी सुधार होगा। फल और फूल की खेती में जैविक विविधता बढ़ाने हेतु कीटनाशक की जगह होम्योपैथिक दवा मदर टिंक्चर के उपयोग की बात कही। कार्यक्रम में 40 से अधिक कृषकों ने भाग लिया। डाॅ. हरिसिंह ठाकुर तथा डाॅ. वैभव चतुर्वेदी जी ने भी कार्यक्रम को सम्बोधित किया तथा कृषकों के प्रश्नों का उत्तर भी दिए।

इस दौरान कृषकों ने मसरूम की अच्छी पैदावार का प्रदर्षन कर जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए संकल्प लिया।


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