भूपेंद्र साहू
धमतरी।सुर्य ग्रहण की वजह से दीपावली के एक दिन बाद निकली गौरा गौरी की पूजा करने श्रद्धालु उमड़ पड़े। ग्रामीण और शहरी अंचल में गौरा-गौरी पूजा का विशेष महत्व होता है। बुधवार तड़के लगभग सभी वार्ड में गौरा गौरी निकाली गई जो सुबह होते होते तक घरों तक पहुंची। दोपहर तक विसर्जन शुरू हो गया। बाजे गाजे के साथ निकली गौरा गौरी में जमकर उत्साह देखा गया।इसके बाद लोग अपने घरों में मवेशियों को अन्नकूट खिचड़ी खिलाए।
क्या है परम्परा
गौरा-गौरी पूजा आदिवासी समाज का विशेष पर्व है। दिवाली की रात समाजिक रूप से दो अलग-अलग घरों में गौरा और गौरी की विधिवत शादी की रस्म पूरा करते हैं। गौरा और गौरी के घर पर मंडप छाते हैं। फिर शाम को दोनों पक्ष की महिलाएं विवाह गीत गाते हुए चूर माटी के लिए जाती हैं। इस दौरान सुवासा और सुवासीन भी रहती हैं। चूरमाटी लेकर वापस आकर मड़वा स्थल पर मिट्टी की पूजा करती हैं।
इसके बाद तेल हल्दी चढ़ाते हैं। गौरा-गौरी का ब्याह कराने की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। रातभर भजन-कीर्तन व गीत गाए जाते हैं। देर रात भगवान शिव का बारात बाजे-गाजे के साथ निकलती है। इस दौरान बाराती नाचते-गाते व खुशी मनाते हुए गौरी के घर बारात जाते हैं। वहां गौरी पक्ष के लोग बारात का स्वागत करते हैं। समधी भेंट करते है। गौरी पक्ष बारातियों को परघाते हैं। चाय-नास्ता देते हैं। इसके बाद रातभर विवाह की प्रक्रिया पूरी होती है। दूसरे दिन सुबह बाजे-गाजे साथ प्रतिमाओं को स्थानीय तालाब में विसर्जित किया जाता है।
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